प्रतीप बनर्जी
एक विभूति थे तुम
ना जाने कहाँ चले गए
छू रहे थे आसमाँ की उचाईयाँ
उससे ऊपर कहाँ चले गए
ढूंढती हूँ सितारों में तुमको
जब कभी याद आते हो
आँखें नम हैं अश्रुपुरित हैं
अक्षर धुंधला जाते हैं
पर्चों को पढ नहीं पाती
कितनी ही बार निरोग किया है मुझको
अब हंसकर कर देखती हूँ उन पुराने परचों को
आप नहीं हो फिर भी वो कमाल करते हैं
मुझे ही नहीं दूसरों को भी ठीक कर देते हैं
समय बीतता है यादें रह जाती है
बातें सारी कहानी बन जाती है
पर आप हमेशा दिल के क़रीब रहेंगे
कभी मुस्कान कभी आँखों का पानी बनकर
प्रतीपबाबु
कुछ यादों के झरोखों से
छोटे भाई और बहन का सुंदर सानिध्य
आप मेरे जीवन का अनमोल हिस्सा थे आज भी हो
मेरी यादों में मेरे ख़यालों में रहते हो
आप एक मितभाषी मृदुभाषी मधुर मुस्कान वाले शालीन व्यक्तित्व के स्वामी हैं
पहली मुलाक़ात
आप St Paul’s दार्जिलिंग से छुट्टियों में घर आए थे और बाबा
`डाक्टर प्रशांत बनर्जी’ ने आपसे मुझे मिलवाया “मिलुन ए पुष्पा पसारी आमार मेए मतुन”
फिर कहा इसका भी मन डा. बनने का है।कुछ साल बाद आप पढने बाहर चले गये ।
आज भी याद है
जनवरी 1990
मेरी तबियत गड़बड़ हुई और सुबह 7.30 बजे आपके घर पहुँच गयी डा. साहब ‘बाबा ‘
ने मुझे देखा और आपको तुरंत चेम्बर खोलकर दवा लाने कहा । बहुत दिन बाद आपको देखा था मेंने कहा आप जल्दी से डाक्टर बन जाओ मैं आपसे ही इलाज कराया करूँगी। बाबा भी हँसने लगे। हमारा अपनापन अनूठा ही था ।
प्रतीपबाबु कहाँ किस दुनिया में चले गए आप ?
बाबा चेंबर कम आने लगे मैं आपके पास आने लगी । मेरी हर बीमारी का इलाज आपलोग ही थे चाहे मन की या तन की ।हमदोनों आपस में मन की भी बात कर लेते दुःख की और सुख की।अनगिनत मधुर स्मृतियाँ है। हमारे यहाँ कुछ भी फ़ंक्शन होता आपसब ज़रूर आते। अनगिनत मौके आए हमेशा आपका सहयोग मिला कहाँ तक बताऊँ।
जब भी आप मेरे घर आते पूछते क्या तकलीफ़ है मेरा जवाब होता आपको देख कर ही मैं ठीक हो गयी कुछ बीमारी याद ही नहीं।
मुझे कुछ भी होता तब तुरंत चेंबर चली आती आप कहते कभी हल्की फुलकी बीमारी के साथ आया करिए हमेशा अजीब अनोखी के साथ आती हैं जो लाखों में एक को होती है।
2010 में हम दिल्ली आ गए मन बहुत अशांत रहता था आप सान्त्वना देते
“सब ठीक होगा time will change don’t worry I am always there for you “.
आज आप नहीं हो
2020 अक्टूबर
मैं कोरोना से ग्रसित हुई ज़्यादा तबियत ख़राब हो गयी । सुबह दोपहर रात जब फ़ोन करती आप हाज़िर रहते थे मेरे लिए। दिसम्बर महीने से आपने मेरा फ़ोन नहीं उठाया एसा क्यूँ मैं उदास थी।
अंतिम मुलाक़ात
4 जनवरी 2021
उस समय शीशे के पार्टिशन से रोगियों को देखते थे। मैंने कहा मैं आपसे सीधे मिलना चाहती हूँ।भीतर लेजाकर मुझे दवा लिखकर दी हालचाल पूछा तब मैंने कहा मैं अकेले बात करना चाहती हूँ असिस्टेंट सब बाहर चले गए मेरा रोना शुरू हो गया कि आप एक महीने से बात नहीं कर थे नाराज़गी है क्या ?
” पुष्पाजी आप बहुत dependent हो गयी हैं मैं नहीं चाहता आप मेरे ऊपर depend करे”
मेरा जवाब था
कुछ भी हो मेरा फ़ोन उठाना पड़ेगा।
शायद आपकी अंतरात्मा ने पूर्वाभास दे दिया था और मुझे सचेत भी किया ।
18 जनवरी 2021
मैं दिल्ली लौट रही थी सुबह सुबह आपको मेसेज किया किया कि जाने से पहले आपसे मिलना चाहती हूँ और तुरंत ही फ़ोन आया आप थोडी देर पहले ही प्रभु के पास चले गए। यह क्या हुआ अविश्वसनिय असम्भव नामुमकिन एसा हो ही नहीं सकता ।
मैं आपको रोकर नहीं बहुत खुश होकर याद करती हूँ स्वयं को Dr Pasari समझती हूँ जैसा आप कहते थे “Dr पसारी ने दवा बताया है बिल्कुल ठीक है”
अब जब भी ज़रूरत होती है आप राय देते हैं। मैं सोचती हूँ कि आप होते तो कौन सी दवा लिखते वही दे देती हूँ।
आप मर्गदर्शक हो
homeopathic संसार में आपका और बाबा का नाम स्वर्ण अक्षरों में लिखा हुआ है ।